गुरु ज्ञान का आहार दे
प्रलय भी निर्माण भी,
हैं गोद जिसकी पल रहे ।
शिक्षक प्रणेता राष्ट्र का ,
कर्तव्य पर यदि दृढ़ रहे ।
यदि विमुख है गुरु धर्म से ,
तो घोर पातक पात्र है ।
पर व्यर्थ अपमानित हुआ,
तो पतन की शुरुआत है ।
ज्यौं पिंड मिट्टी का उठा,
बर्तन बना कुम्हार दे।
त्यौं बीज रूपी शिष्य को,
गुरु ज्ञान का आहार दे।
गोविंद से भी प्रथम क्यों ,
गुरु वन्दना का नियम है ।
गुरु दिखाता मार्ग प्रभु का ,
सब दूर करता भरम है ।
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