सुषमा दिक्षित शुक्ला

गुरु ज्ञान का आहार दे


 


 प्रलय भी निर्माण भी,


हैं गोद जिसकी पल रहे ।


 


शिक्षक प्रणेता राष्ट्र का ,


कर्तव्य पर यदि दृढ़ रहे ।


 


यदि विमुख है गुरु धर्म से ,


तो घोर पातक पात्र है ।


 


पर व्यर्थ अपमानित हुआ,


 तो पतन की शुरुआत है ।


 


ज्यौं पिंड मिट्टी का उठा,


 बर्तन बना कुम्हार दे।


 


 त्यौं बीज रूपी शिष्य को,


 गुरु ज्ञान का आहार दे।


 


गोविंद से भी प्रथम क्यों ,


गुरु वन्दना का नियम है ।


 


गुरु दिखाता मार्ग प्रभु का ,


सब दूर करता भरम है ।


 



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