विनय साग़र जायसवाल

दोहे- *सावन*


1.


इस सावन के मास में ,फ़रमाना कुछ गौर ।


मेरे उर में आ बसो ,तुम बन के सिरमौर ।।


2.


सावन की बरसात में ,धधक रही है प्यास ।


विरही मन कैसे करे ,अभिनंदन की आस।।


3.


करले मेरी बात पर ,सजनी अब तो गौर ।


इस सावन की आग में ,जला न तन मन और ।।


 


सावन का स्वागत करें ,आओ मिलकर मीत ।


तुम बारिश में नाचना ,मैं गाऊँगा गीत ।।


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


👉एक संशोधन के साथ पुन:


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...