2 मुक्तक बिरह वियोग श्रंगार
किसी की याद में बेचैन क्यूं यह नैन रहते है।
प्रतीक्षा में तुम्हारी क्यूँ तरसते नैन रहते है।
समंदर आँख है मेरी हजारों ज्वार दिल में है,
तुम्हारी प्रीति में नीरज बरसते नैन रहते है।।
कुहासा रात का घर में बहुत मद्धिम उजाला है।
मेरी तनहाइयों के अक्स को दर्पण ने पाला है।
जरूरी है चले आओ, सभी मजबूरियां छोड़ो,
मिलन की आस में प्रतिपल बरसते नैन रहते है।
आशुकवि नीरज अवस्थी
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