आशुकवि नीरज अवस्थी

रक्षाबंधन


मेंहदी भरे हाँथ बहना के और अखण्ड सुहाग रहे।


राखी सजे हाथ पर मेरे किंचित द्वेष न राग रहे।।


भाई-बहन का प्यार अलौकिक अतुलनीय धरती पर है,


हर भाई को बहन विधाता देना नीरज मांग रहे।


 


हम भावुक हो अश्रुबिंदु की भेंट समर्पित करते है।


वैभवशाली बहनो पर निज प्राण निछावर करते है।


नेह बहन भाई का जिसके सन्मुख दिनकर भी फीका।


बहनो के चरणों में मुद्रा महल अटारी धरते है


 आशुकवि नीरज अवस्थी मो.-9919256950 


 


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