अलताफ हुसैन बेलिम

इक उम्र गुजार चुका हूँ बाक़ी उम्र मुझे गुजारने दो


जो मुझसे गुस्ताखियां हुई थी अब उन्हे सुधारने दो


 


🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱🌹


 


रुख़सत ए जहाँ तो मुझको होना है इक रोज जब


चीख़ पुकार मचेगी जहाँ में तो फ़िर उन्हें पुकारने दो


 


🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱🌹


 


उसके तन और बदन से खेलें थे हम बहुत हर दफ़ा


उस लम्स की हरारत को ज़ेहन में फिर मुझे उतारने दो


 


🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱🌹


 


तेरे सुर्ख़ होंठ वफ़ा में ढ़ले हुए गेसू शानों पे लटके हुए


ज़ेरो ज़बर उसके गेसुओं को फ़िर से मुझे सँवारने दो


 


🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱🌹


 


घर क्या बना लिया मैंने जब उसके घर के सामने ही


अब उजाड़ रहे है लोग घर मेरा तो उन्हें उजाड़ने दो


 


🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱🌹


 


इस मुक़म्मल जहाँ में उसके जैसा न हँसी कोई सनम


अगर वो ख़ुद पर इतराती हैं यारों तो उसे इतराने दो


 


🌱🌹🌱🌹🌱🌹🌱🌹


 


तुझें हवा भी छुए तो ग़म अलताफ को होता है बेहद


हर शय की नज़र हैं तुझपे वो नज़्र मुझे उतारने दो


 


 


अलताफ हुसैन बेलिम जोधपुर


        


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...