मन मे है दुख प्रेयसी का पर नित मे कलम उठाता हू
करता प्रणाम उन वीरो को मे गीत उन्ही के गाता हू
जो बर्फीली चट्टानो मे अपना करतव निभा रहे
हैं गद्धार देश के अंदर न कदम से कदम मिला रहे
ना गरीब तक पेंसन पहुचे ना कोई सेबा सरकारी
निर्धन बच्चे भूंखे बिलखें खाये मेवा करमचारी
देख दशा इन लोगों की ए मन मे विचलित हो जाता हू
है प्रणाम उन वीरो को---
भूल गये ये भारत मे की कैसे कैसे वीर हुये
भगत सिंह सुख देव राज चन्द्रशेखर समशीर हुये
भूल गये ये झांसी की रानी की वह अमर कहानी
ना गोरों को शीश झुकाया खूबलडी बो मरदानी
गौरव गाथाये याद कर मे नतमस्तक हो जाता हू
है प्रणाम उन वीरो----
भूल गये हल्दी घाटी महाराणा की कहानी को
बार बार प्रणाम मे करता राजपूत कि जवानी को
भूल गये चेतक की गाथा और उसकी कुरवानी को
आज भी मंदिर बना बो जग देखता उसी निसानी को
छब्बीश फुट गहरे कूंदा सोच जयकार लगाता हू
है प्रणाम उन वीरो को----
अनिल विधार्थी (जख्मी)
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