मेरे सपनों का भारत
निज संस्कृति को अपनाकर, इस विश्व की दिव्य स्थली बनेगा।
वेद-पुराणों और संस्कारों से, जन-जन का ये अंत:करण भरेगा।।
सुंदर स्वर्णिम फलक पर, फिर-से इसका नाम जगमगाएगा।
एकता और अखंडता को देख, दुश्मन भी लोहा मान जाएगा।।
उत्सव रूपी विविध अलंकारों से, मिलकर इसका श्रृंगार करेंगे।
उत्तर से दक्षिण तक, हर भारतवासी की सकल पीड़ा को हरेंगे।।
अमीरी-गरीबी की रेखा मिटेगी, रोशन होगा हर घर का कोना।
कृषि प्रधान मेरे देश की धरती, दिनोंदिन उगलेगी हरा सोना।।
विध्वंसक शक्तियों का होगा नाश, ज्ञान दीप चहुँ-ओर जलेगा।
सड़ी-गली कुरीतियाँ मिटेंगी, नारी को वही सम्मान मिलेगा।।
विश्व शांति के महायज्ञ में, जलाकर मशाल संपूर्ण तमस हरेगा।
कर्मों के चंदन टीके से, हर भारतवासी इसका अभिषेक करेगा।।
अनिता तोमर ‘अनुपमा’
(स्वरचित एवं मौलिक रचना)
3-B गोल्ड नेस्ट अपार्टमेंट, मुर्गेश पाल्या
बेंगलुरु
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