अरविन्द्र ओमप्रकाश पाल

आदेशित करिए जगजननी,


हर धार मोड़ दी जाएगी।


जो आँख उठेगी भारत पर


वह आँख फोड़ दी जाएगी।।


 


गीदड़ की ये औलादें क्या 


फौलादों से टकराएंगी।


आएगी मृत्यु निकट जब जब


चलकर शहरों को जाएंगी।।


 


उत्तर में प्रहरी के समान


जब पर्वतराज हिमालय है ।


दक्षिण में सिन्धु सरोवर तट


आखिर हमको किसका भय है।।


 


सोने की चिड़िया विश्वगुरू


मेरा भारत कहलाया है।


छ: ऋतुओं से होकर निबद्ध


पावन वसन्त जब आया है।।


 


पीले सरसों के खेत हुए


वसुधा धानी हो जाती है।


नीहार बिन्दु मोती जैसे


भीनी सी खुशबू आती है।।


 


इतिहास पुरातन जिन्दा है,


हर भारतवासी की नश में।


गौरव गरिमा का गान बनें,


परिणित हों जीवन अन्तस में।।


 


 


 *अरविन्द्र ओमप्रकाश पाल* 


   *फतेहपुर उत्तर प्रदेश*


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...