सजा दो राह कलियों से,
अवध में राम आये हैं
अयोध्या फिर हुई पावन
ख़ुशी के मेघ छाये हैं।
कहीं कजरी,कहीं झूले
कहीं पकवान की ख़ुशबू
रँगीले दीप अलियों से
सुहावन सी लगे सरयू
अयोध्या लग रही दुल्हन
धरा नभ मुस्कुराये हैं
सियापति राम कण-कण में
बने आराध्य जन जन के
दयानिधि त्याग की मूरत
सहारा दीन निर्धन के
बनेगा भव्य इक मंदिर
भजन सब गुनगुनाये हैं
प्रतीक्षा हो गयी पूरी
मिटाकर द्वेष की भाषा
विचारों में सियापति हैं
पढ़े सब प्रेम परिभाषा
हुये सब देवगण हर्षित
सुमन नभ से लुटाये हैं।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या उत्तरप्रदेश
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