करना अखण्ड भारत का सपना तुझे ही अब कवी अशोक साकार है
इस राजनीति की नीति में नैतिकता की हर एक परिभाषा स्वीकार है
विश्वासो का यहाँ कत्ल हुआ इस कदर की राम ने जला डाली मथुरा
भारत भूमि पे कन्हैया लगाये लांछन प्रभु नाम भी होने लगे गद्दार है
सरे आम अब निर्भया की आबरू दांव पर लग जाती यहाँ
मर्यादा का कंकाल शेष रह गया यहाँ न्याय हुआ अब बेकार है
यहाँ गरल उगलता देखा आस्तीन के पाले हुए सांपो को हमने
जिस थाली में खाते उसमे छेद कर जाते छुपे यहाँ रंगे सियार है
इससे अधिक अब क्या लिखूँ की ध्वाजा सकल विश्व पर फहरा दूंगा मैं
राम राज्य हो विश्व में जनता का शासक पर होगा सामान अधिकार है
अपने गुणों पर गर्व मुझे लिख दूंगा साहित्य में नया इतिहास
विश्व मंच की महफ़िलों में मेरे भारत देश का होगा अभिसार है
अशोक के अंदर की ज्वाला धधकती कब होगा महिमा मंडित भारत का
शत खण्डों में बिखरा भारत कब होगा इसका सम्पूर्ण विरस्तार है
भारत माता रोते रोज सपनों में आती अशोक होता मन आहत
ले निर्णय भारत को गुलामी से आजाद कर गर देश से प्यार है
अंतरात्मा तक आहत हुई आज भारत माता की लिख दे कविता में अशोक
जो कहता भारत तेरे टुकड़े होंगे उन कपूतों के इस कृत्य पे धिक्कार है
अशोक सपरा
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