अवनीश त्रिवेदी "अभय"

श्री कृष्ण स्तुति


 


भाद्रपद कृष्ण पक्ष, अष्टमी की आधी रात,


                     विष्णु के आठवें हुए, कृष्ण अवतार थे।


वासुदेव देवकी की, आठवीं संतान कृष्ण,


                    गोकुल में पले - बढ़े, नन्द जी के द्वार थे।


बचपन से ही बड़े, नटखट श्याम रहे,


                      माखन चुराके खाते, मोहन अपार थे।


घट फोड़ देते कभी, वस्त्र भी चुराते कभी,


                  सारी गोपिकाओं से ही, करते वो प्यार थे।


 


कर्मयोगी कृष्ण बने, गीता उपदेश दिया,


                  मानवता को सिखाया, जीवन का सार है।


जैसा कर्म करो स्वयं, वैसा फल मिले सदा,


                    मानता ये बात आज, सारा ही संसार है।


अन्याय को मिटाकर, न्याय ही किया है सदा,


                    विश्व पर आपका तो, बड़ा उपकार है।


त्रुटियों को माफ़ कर, क्षमादान देते सदा,


                   नाम जपने से होता, सबका उद्धार है।


 


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


सीतापुर - उत्तर प्रदेश


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