विश्वास की प्रभात
ढ़लते सूरज ने मुझे पुकारा था
रात घनी, चिराग जलाए रखना,
होगा फिर ज्योतिर्मय प्रकाश यहाँ
आस - विश्वास का दीप जलाए रखना।।
रात इतनी घनी, कि घना घनघोर
तारे भी चंचल ज्योत में मन्द है,
प्रभात के इंतज़ार में बैठा कालीसैया
जलता चिराग हवा से बन्द है।।
रातों में प्रभात का संस्मरण जप रहा
प्रफुल्लित चमकता फिर कण - कण होगा,
रात के बाद दिन खिलता हमेशा
इस आँधी के बाद नव हवा का क्षण होगा। ।
धूमिल होते यह तारे यूं कह रहे हैं
सटेगा फिर घना काजल - सा अंधेरा,
फिर खिलेंगें , पंछी होंगे गगन में
भोर ले आ रही नए आस का सवेरा।।
कमल कालु दहिया
जोधपुर, राजस्थान
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