*आ के सावन..*
आ के सावन बीत गया, ऋतु भादो की ना बीत जाए कहीं
तू कहे अगर गूँथू मैं
तेरी बिखरी अलकों में
फूल कोई
चूम के तेरे गोल कपोल
नयनों में रख दूं रुप कोई
ऐसा ना हो मौसम ये
रुखा ही बीत जाए कहीं
आ के सावन बीत गया, ऋतु भादो की ना
बीत जाए कहीं
खोई खोई तेरी जवानी में
आ प्रेम का थोड़ा रस भर दूं
तेरे रुखे होठों को लहू जिगर का दे दूं
ये हसीन जवानी की ऋतु है
अनछूई ना रह जाए कहीं
आ के सावन बीत गया,ऋतु भादों की नी बीत जाए कहीं।
डा. नीलम
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