डा. नीलम

सुनो कान्हा 


क्या तुम कभी भी


समझ सके


राधे के मन की पीर


क्या कभी देखी


तुमने उसकी


आँखों में 


आँसूओं की भीर


तुमने तो हर बार 


अपनी करनी को


नियति का नाम दिया 


और हर बार ही


तुमने राधा को


त्याग दिया 


माना तेरे नाम से पहले


आता है राधा का नाम 


पर तेरे निर्णयों में 


कब, कहाँ खड़ी है वो


लज्जा सखी द्रोपदी की 


तूने ही तो थी बचाई


फिर राधा को छोड़ दिया


जो लोक लाज तज


तेरे पीछे आई


तू तो कर्म के नाम पर 


जा बैठा मथुरा धाम


क्या गुजरी वृंदावन पे 


क्या समझेगा श्याम 


सुनो न कान्हा 


तुमतो थे न्याय पथगामी


फिर क्यों अन्याय से


काम लिया 


कर्ण के कवच, कुंडल 


उतरवा


भाई के हाथों भाई को


मरवा दिया 


जानते थे ना तुम तो


माँ गांधारी की


तपशक्ति को


फिर भी तुमने छल से


दुर्योधन की जानु को


आवृत करा कमजोर 


रहने दिया 


बार -बार न्याय का


देकर हवाला 


अन्याय को पोषित किया


पाँच पाण्डवों से


सौ कौरवों का संहार करवा


द्रोपदी को महाभारत का


कारक बनाया 


सच कान्हा तुमने 


हर बार 


करके सारे कृत्य आप


नारी को ही आधार बनाया ।


 


          डा. नीलम


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