मुझे याद है जरा जरा
तनहाई का आलम था
वो तेरा आना-आना था
वादा करके मुकर जाना
मुझे याद है जरा जरा
बरस रही थी चाँदनी
मौसम भी भीगा भीगा था
घने गेसूओं से गिरते थे मोती
मुझे याद है जरा जरा
वो अमराई में बौराया बौर
थी डालियों पे झूलों की रमक
तुम्हारा हौले-हौले झूला देना
मुझे याद है जरा जरा
ख्वाबों की चादर बिछा
नदिया के किनारे
डाल हाथों में हाथ घूमना
मुझे याद है जरा जरा
मेरे आँसू अपनी पलकों पे सजा
खुशियां मेरे लब को देना
यूं मेरे हालात बदलना
मुझे याद है जरा जरा
उम्र के इस दौर में
गुजरी हसीन यादों का
वो बीता खूबसूरत सफर
मुझे याद है जरा जरा।
डा. नीलम
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