वर्तमान की बाहों में
देखे जाते हैं भविष्य के सपने
आकर्षित जग को माधव करते
गोकुल वृन्दावन सब हैं अपने।
दिन रात अलौकिक था जब
माधव के धरा पर पांव पड़े
अपनापन लेकर ही आये
ममता का सब लिए छांव खड़े।
अपने मोहित मुस्कानों से
सबके कष्टों को हर लेते हो
अपना सब सुख खोकर भी
जन-जन को राह दिखाते हो।
तुमने तो स्वयं से युद्ध किया
तुम ही हारे तुम ही जीते
संदेश विश्व को देकर तुमने
कर्म ही सर्वोत्तम गीता कहते।
जैसी तेरी छवि है माधव
वैसे तेरे सब प्रतिरूप नहीं
अर्जुन और सुदामा सा देखो
दूजा कोई मित्र स्वरूप नहीं।
धरा के सभी पापों का
तूं ही तो निवारक है
बढ़ रहे दुराचारों के
तूं ही तो बस मारक है।
हे! दो माताओं के एक सपूत
तूं कण-कण में ही बसता है
तेरे माखन की चोरी का
अब भी वात्सल्य में तकता है।
तेरा रहस्य तूं ही जाने
तूं ही राघव तूं ही माधव है
जाने कितने हैं प्रतिरूप तेरे
तेरे आशिषों से जग साधव है।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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