जीवन के संघर्षों में तुम
अपने लिये भी जिया करो
अपनी ही अनुभूति से तुम
सुखद संकल्प लिया करो।
क्या है जीवन की परिभाषा
खुद से खुद को दिया करो
गिरकर उठना उठकर चलना
नव ऊर्जा प्राणों में भर चला करो।
आत्मसात कर स्वयं कर तूं
क्या खोया है क्या पाया
लो समेट हर क्षण को तुम
पुण्य कर्म संचित कर ना हो जाया।
दूजे प्राणी का दु:ख अपना
मरहम सा तुम लगा करो
तन की सुन्दरता से मन सुन्दर
मन कर्म - धर्म से लगा करो।
जीवन के दु:ख विस्मृत कर
मन मानव बनकर रम्हा करो
कोई भी दुविधा हो खड़ी कहीं
संन्यास भाव से चला करो।
जीवन पथ के शूलों से तुम
हर पल व्याकुल हो जाते हो
पथ के शूलों को पार कर
सुगम पदचिन्ह दिया करो।
-दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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