जीवन में अवसान सत्य है
दोनों के अवागमन सत्य है
आये हो निज जीवन लेकर
जाने का सम्मान सत्य है।
तेरी माया से हार चला हूं
सम्बन्धों को त्याग चला हूं
मृत्यु का भी क्या है कहना
जीवन का अनमोल है गहना।
आना ही जीवन पर हंसता
जाना ही जीवन पर हंसता
दो पाटों के बीच में देखो
जीवन ही आखिर है पीसता।
जीवन भरी मधुशाला है
मृत्यु अमृत का प्याला है
जीवन पर सब न्यौछावर कर
मृत्यु के चरम सुख वरण कर।
मृत्यु निहार रही है द्वारे
भव से तुमको पार उतारें
नहीं मांगता स्नेह को तुमसे
आओ पुण्यवेदी पर वारें।
जीवन कभी हताशा है
मृत्यु बड़ी ही आशा है
पत्तों पर पानी का गिरना
बूंद रुके उत्तम है कहना
पत्ते को बूंद ही पाकर
ठहर जीवन का अनुभव कर
आओ अन्दर खामोशी रो पड़ी है
मृत्यु ही सुखद जीवन की अमिट घड़ी है।
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज उत्तर प्रदेश।
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