ज़िद भी ऐसी ना हो
कि थक गया हूं बस करो
दूर तलक जा होना है आसमानी
नई इबारत लिख रहा हूं बस करो।
गुफ्तगू उनसे की नये सफर की
मृत्यु तो आनी ही है जी लिजिए
अमर होना है अगर हर दिलों में
मरकर जिंदगी के चरम ले लिजिए।
क्यों! मौत को चुपके से बुलाया
व्याकुल हो गये स्तब्ध हैं सब
मौत को आनी थी कल कहा था
आमंत्रित ऐसे किया स्तब्ध हैं सब।
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि राहत इन्दौरी साहब
दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल
महराजगंज, उत्तर प्रदेश।
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