दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


अब ये रिश्ते बेमानी से लगते


जो राजनीति के शूलों पर है


ऐसे सम्बंधों का क्या करना


जो बर्बादी के तीरों पर हैं।


 


लांछित हैं सब ऐसे रिश्ते


जो विज्ञापन के अधिकारों पर हैं


साक्षी मान जिससे कुछ कहते तुम


ऐसे सम्बंधों में प्यार कहां पर है।


 


खबर सनसनीदार बनाने पर


देखो कितना सम्मान कहां है


इस पर तो अब ध्यान हमें है


सीधी सच्चाई अधिकार कहां है।


 


अब रिश्ते के मूल्यों को देखो


काट रहे हो क्यों रोकर


कर्मों के विश्वासों से जकड़ो


जन्म सम्बंधों को मारो ठोकर।


 


मिला एक निष्ठ श्रद्धा का


कितना सुन्दर सा फल है


रिश्ते की सच्चाई को देखो


अंगारों से जला सिर्फ बचा जल है।


 


चक्र समय का जीवन में चलता


दु:ख-सुख सुख-दु:ख का भान नहीं है


बैठा घात लगाये तेरे कर्मों पर अब


निष्ठुर समय तुझको ये अनुमान नहीं है।


 


छल-प्रपंच के चालों से जो


किस्मत के ताले खोल रहे हैं


देखो मर्यादा को तार-तार कर


जन्म-जन्म के पाप मोल रहे हैं।


 


दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज, उत्तर प्रदेश ।


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