दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

हे! गजमुख गणपति मंगलमूर्ति पधारो मेरे द्वार,


रिद्धि-सिद्धि के स्वामी तुम हरो कष्ट विकार।


 


हे! गिरिजानंदन दुख भंजन संतन हितकारी


हे! लंबोदर विनती करूं मैं बनो काज सिध्दिकारी।


 


हे! विघ्न विनाशक मात पिता के आज्ञाकारी,


जग के कष्ट हरो प्रभु व्याकुल आया शरण तुम्हारी।



  दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


    महराजगंज उत्तर प्रदेश।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...