दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

मेरे प्रियतम का अमिट स्नेह 


जो पार क्षितिज तक चला गया


अमर सुहागिन मैं सदा रहूं


गोधूलि में प्रभू दीप जला गया।


 


मेरा जन्म हुआ तब शून्य प्रिये


तुझको पा हृदय प्रफुल्लित हुआ


तुम मुझमें अपना सुख देखो


प्रियतम सब तुझमें विलीन हुआ।


 


गौरा पार्वती ने घोर व्रत तप की


पाया अजन्मा शिव प्रेम प्रिये


गठबंधन ऐसा अलौकिक बंधन है


सतजन्मों के बंधन का प्रेम प्रिये।


 


गणपति संग शिवगौरा का पूजूं


व्रत हरितालिका से पाऊँ मैं आशीष


रहूं निर्जला व्रत मेरा है सौभाग्य 


श्रृंगार कर पाऊँ प्रियतमआशीष। 


 


मांग सिन्दूरी से भरा दें प्रभु आशीष 


मां गौरी के दीक्षा से लिया गृहस्थ मान


मेंहदी रची रहे प्रतिपल हाथों में


ये सब जीवन के अनमोल रत्न है भान। 


 


ईश ये विनती है सदा


दिजिए मुझको भी वरदान


तुझको है मेरा भाव समर्पित 


तुझमें रम्ह जाऊं ये मेरा अरमान। 



दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


महराजगंज उत्तर प्रदेश।


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...