डॉ बीके शर्मा

चले दूर कहीं (एक ग़ज़ल)


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खुल ना जाए राज कहीं 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं


 


उम्र ये ढल ना जाए 


है फैसले की घड़ी 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


साथ-सांझ जैसा 


है रात दामन छोड़ चली


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


है अजीब अपनी छाया


है दिन साथ रात छोड़ चली


चले दूर कहीं, चले दूर कहीं 


 


झण भर के दुख सुख साथी


हो उदास क्यों कोने खड़ी 


चले दूर कहीं ,चले दूर कहीं 


 


लिखते लिखते मेरी कलम


है आज क्यों रो पड़ी 


चले दूर कहीं,चले दूर कहीं


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


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