(भ्रष्टाचार और गरीबी)
वह मेरे साथ खेला था
मेरे साथ पढ़ा था
उसे पॉच वर्ष पहले देखा
जवान था
शरीर से भी
मन से भी ||
आज अचानक मिला
मेरे पास आकर रुका
दवे स्वर से आवाज आई
भाई कैसे हो ?
मैं मंत्र मुग्ध स्तब्ध
नजरें उसी चेहरे को
जानने टिक गई
चेहरे पर झुर्रियां
माथे पर सलवट
आंखें खाई में धंसी हुई
बालों पर सफेद चादर
होठों पर पपड़ी
और
निर्जन रेगिस्तान की तरह
बादलों के इंतजार में
जैसे कोई बाट झोता हो ||
इंसानियत को
भ्रष्टाचारी गिद्धों ने
नोच नोच कर खाया
और गरीब को
शोषण रूपी कौऔं ने
खूब चबाया
खादीधारी चोरों ने
खूब इंसानियत का
बलात्कार किया ||
मेरी नजरें हटी
उर से आवाज आई
अरे "दीनू" तुम !
हां भाई
मैं
पर यह कैसे ?
दबे स्वर में दीनू बोला ||
भाई !
सब के सब चोर है
सत्ताधारी मोर हैं
बादल जब गरजते हैं
तभी नाचते हैं
कुर्सी पर बैठते ही
भ्रष्टाचार का चालीसा लिखते हैं
और बांचते हैं ||
पहले गरीबों को आंकते हैं
फिर उनकी इज्जत में झांकते हैं
भाई गरीबी ईमान वफादार है
भ्रष्टाचार होशियार है
भाई हमारे चेहरे की झुर्रियों की
धंसी आंखों की
सफेद बालों की
और चटके के होठों की
"स्विस बैंक"
भ्रष्टाचार को ब्याज दे रहा है ||
मैं यह सुनकर
कंम्पित हुआ
दृढ से बोला
नहीं "दीनू"
अभी हक की लड़ाई बाकी है
गांधीवाद आदर्श है
खादीबाद अपकर्ष है
हां ये सब के सब चिड़ीमार हैं
पर हमारे पास
एकता का
अखंडता का
हथियार है ||
वो तो सब ठीक है भाई !
पर यह बारिश में निकलने वाले
मेंडक हैं
ये कुकुरमुत्ते की तरह है
इनके घर दो पैरौं के पालतू कुत्ते हैं
जो गरीब की हड्डियों को चवाते हैं
और
गिदडों की वफादारी निभाते हैं ||
पर भाई ये हमारे बनाए हुए
सिर चढ़ाए हुए हैं
इन्हें नीचे लाना होगा
सत्य का आइना दिखाना होगा
यही एक युग निर्माण का
रास्ता है
और
गरीब को गरीबी का वास्ता है ||
फिर "दीनू" थोड़ा आगे बढ़ा
रुका और बोला
भाई !
इनकी कथनी और करनी में
बड़ा फर्क है
और फिर चल दिया........
मैं निरुत्तर सा देखता रहा बस......
डॉ बीके शर्मा
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