तू आती है हाथों में
लिख जाती जीवन जग
चीर ना पाई सीना मेरा
मैं तो हूं कोरा कागज -1
देवों के हाथों में आकर
तूने मुझ पर बार किया
अच्छा था मैं कोरा कागज
लिख डाला बेकार किया
यमराज ने भी तुझे दे डाला
चित्रगुप्त के हाथों में
सब कुछ गुप्त रखा उसने भी
रख मेरी छाती पर पग
मैं तो हूं कोरा कागज -2
ऋषि मुनियों के हाथों आकर
तूने वदों को है रच डाला
धर्म ग्रंथ सब रच डाले
कर डाला मुझको काला
सब्र न तुझको फिर भी आया
छाती पर तूने लिख गाया
पता नहीं क्यों साथी मेरे
करती रही जीवन में ठग
मैं तो हूं कोरा कागज -3
खींच लकीर तूने मुझ पर
कितने हिस्से कर डाले
इतनी बड़ी भी थी ना कहानी
कि तूने किस्से कर डाले
इतना होने पर भी हम तुम
क्यों एक दूजे से मिल जाते
छू जाती सांसे एक दूजे को
क्यों अधरों से रस बरसाते
विपरीत दिशा में चल कर भी
क्यों जाते एक दूजे से खग
मैं तो हूं कोरा कागज -4
मैं रहता बेचैन हमेशा
क्यों देखना पाया मुझको जग
तू चलने को बेताब हमेशा
क्यों समझ ना पाई
मेरी दुखती रग
मैं तो हूं कोरा कागज -5
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
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