कर चुका हूं मंथन तेरा
आ करूं अभिनंदन तेरा
तू ही अटल तू ही सत्य है
स्वीकार मुझे है बंधन तेरा
आ करूं अभिनंदन तेरा
तू ही चिर है तू ही स्थिर
सब नष्टबान और अस्थिर
है जीवन की यही अभिलाषा
करता रहूं मैं बंदन तेरा
आ करूं अभिनंदन तेरा
वह रस कहां और मिलन में
जो रस तेरे है आलिंगन में
क्यों ना इसका पान करूं फिर
तन भी तेरा मन भी तेरा
आ करूं अभिनंदन तेरा
तू सत्यम और सुंदरम
शिवोअहम् और बंदनम्
है निर्माण शांति प्रदम्
मालिक है रघुनंदन तेरा
आ करूं अभिनंदन तेरा
तुम मृत्यु हरी मुख की बानी
अखिल विश्व श्रुतियों की रानी
चिर निद्रा हो योगेश्वर की
स्वीकार करो अभिवादन मेरा
आ करूं अभिनंदन तेरा
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें