डॉ बीके शर्मा

कौन हो तुम ?


जो मेरे गीतों में आती हो


मैं लिखता हूं गजल


तुम शब्द मेरे बन जाती हो


 


जब जब करता आंखें बंद


तुम कविता बन


दिल में उतर जाती हो 


कौन हो तुम ?


 


यह निष्फल शोध मेरा 


धिक् जीवन !


जो तुम्हें पहचान ना पाया 


है उर में छिपा एक भेद 


जिसे मैं खोल ना पाया 


फिर क्यों जीवन का हर क्षण 


तुम मेरे साथ बिताती हो 


कौन हो तुम ?


 


जो जुड़ी हो तुमसे 


नहीं भाग्य रेखाएं वे मेरे कर में 


बोध नहीं मुझको वह क्षण


उतर गए जब तुम मेरे उर मैं 


मैं हूं निरर्थक !


जो पाया जीवन भर खोया 


तुम आती हो क्यों 


पावन करने को पत्थर 


इस कंक्रीट उर में तुमने 


बीज यह कैसा बोया


फिर भी ऐसे बज्र कवि की


तुम पंक्ति क्यों बन जाती हो 


कौन हो तुम ?


जो मेरे गीतों में आती हो |


 


डॉ बीके शर्मा


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


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