भ्रष्टाचारी नेता
चौपाल पर भीड़ लगी
घर का कोना खाली
मेंढक हैं सब बारिश के
मारो तुम दो ताली
आग लगा के ये औरों के
करते स्वयं उजाला
खुलेआम करते नुमाइश
हाय वतन बेच डाला
सुर सज्जन की बस्ती में
ये दैत्त कहां से आए
फैराते यह अधर्म पताका
क्यों मानवता पर छाए
क्यों जलती नहीं ज्वाला ऐसी
असुर जलाए देश बचाए
क्यों आता नहीं कोई तूफा ऐसा
जो भ्रष्टाचार कि नीव हिलाए
चक्र तोड़ जो अंधकार का
अपनी जीत का दीप जलाए
असुर जलाए देश बचाए
इस दुर्योधन से मातृभूमि की
कोई कृष्ण बने और लाज बचाए
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें