डॉ बीके शर्मा 

धर्म त्याग हो जाए मगर 


कर्ता बनकर कर्म न छूटे 


जगती में लुट जाऊं चाहे 


जगती आकर मुझको लूटे


 


 सबका क्रोध जलाए मुझको


 पर क्रोध ना मेरा उर से फूटे


 परख तपन से होती स्वर्ण की


 फिर मर्म मेरे क्यों रहे अछूते 


 


नहीं जानता हित अनहित मैं


पर साथ तेरा ना मेरा छुटे


है सच्चा बंधन तेरा मेरा 


बाकी सारे रिश्ते झूठे


 


सुख कहां बिरंचि जगत में


चमत्कार हो चाहे अनूठे 


हो स्वार्थ मोह बलवान मगर


लग्न मेरी ना तुझसे टूटे 


 


जल जीवन वायु प्राण भूगर्भ 


पावक ज्योति अनंत मार्ग में 


मिलना प्रिय साथ तेरा ना छूटे 


 


थाम हाथ संग ले चल सकी


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी..


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान


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