श्री कृष्ण उवाच:
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है पुरातन
जो सनातन
है अजन्मा
शोक उसका क्या करें |
जलता नहीं
जो गलता नहीं
जो है अविनाशी
शोक उसका क्या करें |
कटता नहीं
जो सूखता नहीं
जो है अच्छेद
शोक उसका क्या करें |
गिरता नहीं
जो मरता नहीं
है अव्यक्त
शोक उसका क्या करें |
अर्जुन उवाच:
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बीच भंवर में जीवन नैया
बीच भंवर में फंसा खेवैया
तुम कहते हो आओ किनारे
क्यों दूर खड़े हो देख रवैया
करुणा घेरे व्याकुल उर को
दुख घेरे कंठ से सुर को
नहीं ज्ञात मुझे अपना पराया
नहीं जानता सुर-असुर को
कृष्ण उवाच:
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तुम तो पार्थ हो मेरे प्यारे
छोड़ो मोह और रिश्ते सारे
जो जन्मा नहीं उसे क्या मारोगे
जीता क्या है जो तुम हारोगे
क्या साधन तुम साथ में लाए
क्या साधन तुम ले जाओगे
हो जाओ सजग तुम
"पार्थ" ओ मेरे
धर्म युद्ध है
सामने तेरे
अर्जुन उवाच:
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कर्ता क्या कर्म क्या
अकर्म क्या है |
धर्मा क्या धर्म क्या
अधर्म क्या है ||
क्यों नहीं कर्म मेरे
दिव्य निर्मल |
क्यों काम राग भय
बनाते निर्बल ||
क्यों घिरते मुझे यहां
वर्ण भेद हैं |
आप हैं आप में
चारों वेद हैं ||
क्यों कर्म में
अकर्म मैं देखता नहीं |
क्यों अकर्म में
कर्म मैं सोचता नहीं ||
आप अविनाशी हैं
आपसे सर्व है |
आपसे शून्य है
आपसे ही गर्भ है ||
फिर कर्म लिप्त हूं
मैं यह जानकर |
क्यों रहता अधर्म
भृकुटी तानकर ||
जग आश्रित है
आप आश्रय हैं |
अधर्म है अकर्म है
आप तो श्रेय हैं ||
करें भस्म कामना
राग द्वेष मेरे |
आप तो जानते हैं
सब भेष मेरे ||
श्री कृष्ण उवाच:
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क्या पाया है
जो दिया है तुमने |
क्या ग्रहण किया
क्या त्यागा तुमने ||
यह तो बस
साधन है तेरे |
तुम तो प्रिय
"पार्थ" हो मेरे ||
डॉ बीके शर्मा
उच्चैन भरतपुर राजस्थान
9828863402
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