जय श्री राम!
(गीत--रचना)
जिस छवि के सम्मुख विश्व की ,
बेकार हर जागीर है ।
वह रुप है श्री राम का,
वह राम की तस्वीर है।
सिर पर मुकुट गेरुआ बसन,
आजानुभुज श्यामल बरन ,
सुंदर चिबुक सुंदर नयन ,
माथे तिलक कुंडल श्रवण ,
नवनील अंबुज---सा बदन,
जमुना का जैसे नीर है।
वह रुप है श्री राम का ,
वह राम की तस्वीर है ।
रघुवंश के नीलोत्पल ,
अपनी प्रतिज्ञा में अटल,
तप में कठिन जप में सरल,
तन सुरमई मन के धवल,
बन की कुटी हो या महल ,
बस एक ही तासीर है ।
वह रुप है श्री राम का,
वह राम की तस्वीर है ।
खल निशिचरों के वास्ते,
विपरीत जिनके रास्ते ,
सज्जन हैं जिनके नाश्ते,
जो विघ्न नित उपराजते ,
कोदंड जिनके हाथ में है,
पीठ पर तूणीर है ।
वह रुप है श्री राम का,
वह राम की तस्वीर है।
गुणवान जो मतिमान जो,
संकट में धीरजवान जो,
पुरुषों में सकल महान जो,
सुख-दुख में एक समान जो ,
मानस में जिनकी कीर्ति का,
वर्णन बहुत गंभीर है।
वह रुप है श्री राम का ,
वह राम की तस्वीर है ।
जो विष्णु के अवतार हैं ,
दुनिया के पालनहार हैं ,
इस सृष्टि के पतवार हैं ,
त्रेता के मनसबदार हैं,
प्रभु अवध में पैदा हुए ,
यह अवध की तकदीर है ।
वह रुप है श्री राम का,
वह राम की तस्वीर है ।
श्री राम का जो कर्म है ,
आदर्श है सदधर्म है ,
यह राजनीतिक मर्म है --
जो आदमी बेशर्म है ,
वरना जगत में कुछ नहीं---
रघुवीर ही रघुवीर है ।
वह रुप है श्री राम का,
वह राम की तस्वीर है।
-------- नीरव
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