डॉ.कृष्ण कुमार तिवारी

जय श्री राम! 


         (गीत--रचना)  


जिस छवि के सम्मुख विश्व की ,


बेकार हर जागीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है।


सिर पर मुकुट गेरुआ बसन,


आजानुभुज श्यामल बरन ,


सुंदर चिबुक सुंदर नयन ,


माथे तिलक कुंडल श्रवण ,


नवनील अंबुज---सा बदन,


जमुना का जैसे नीर है। 


वह रुप है श्री राम का ,


वह राम की तस्वीर है ।


रघुवंश के नीलोत्पल , 


अपनी प्रतिज्ञा में अटल,


तप में कठिन जप में सरल, 


तन सुरमई मन के धवल, 


बन की कुटी हो या महल ,


बस एक ही तासीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है ।


खल निशिचरों के वास्ते, 


विपरीत जिनके रास्ते ,


सज्जन हैं जिनके नाश्ते, 


जो विघ्न नित उपराजते ,


कोदंड जिनके हाथ में है, 


पीठ पर तूणीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है। 


गुणवान जो मतिमान जो, 


संकट में धीरजवान जो, 


पुरुषों में सकल महान जो, 


सुख-दुख में एक समान जो ,


मानस में जिनकी कीर्ति का, 


वर्णन बहुत गंभीर है। 


वह रुप है श्री राम का ,


वह राम की तस्वीर है ।


जो विष्णु के अवतार हैं ,


दुनिया के पालनहार हैं ,


इस सृष्टि के पतवार हैं ,


त्रेता के मनसबदार हैं, 


प्रभु अवध में पैदा हुए ,


यह अवध की तकदीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है ।


श्री राम का जो कर्म है ,


आदर्श है सदधर्म है ,


यह राजनीतिक मर्म है -- 


जो आदमी बेशर्म है ,


वरना जगत में कुछ नहीं--- 


रघुवीर ही रघुवीर है ।


वह रुप है श्री राम का, 


वह राम की तस्वीर है।


-------- नीरव


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