तुम्हारे साथ मैं बंद कमरे से निकलकर,
प्रकृति की छाँव मैं।
चल रही हूँ मैं हमसफर,
अब तुम्हारे साथ मैं।
पक्षियों की चहचहाट,
पत्तियों की सरसराहट।
सुबह की गुलाबी धूप,
साथ तुम्हारे भाती खूब।
आम की अमराइयों मैं,
भीनी भीनी है महक,
आज मन मैं है उमंग
मैं भी लूँ थोड़ा चहक।
नींबू, कटहल और अमरूद,
गन्ना भी लहराये खूब,
आँवले और अरण्डी की,
यारी यहाँ बनी है खूब।
तुम संग गेहूँ मैं लहराऊँ,
मेथी, पालक तोड़ के लाऊँ।
बाजरे की रोटी के संग,
पालक का मैं साग बनाऊँ।
सामने बैठो मेरे पियाजी,
अपने हाथों से मैं खिलाऊँ
बंद कमरे से निकलकर,
प्रकृति की छाँव में
चल रही हूँ मैं हमसफर ,
अब तुम्हारे साथ मैं।
डॉ निर्मला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें