डॉ. निर्मला शर्मा दौसा राजस्थान

निज संस्कृति, गौरव, उन्मेष


स्वर्णिम जिसका इतिहास रहा है


रहता जो सदा आलोकित


 


पावन पवित्र धरा जिसकी


मनीषियों से होती सदा सुशोभित


 


संस्कार संस्कृति पर जिसकी


मुझको कोटि कोटि अभिमान


 


जिओ और जीने दो की रही


 परिपाटी जिसकी सम्मान


 


निज स्वार्थ का कर त्याग


सदा परमार्थ मार्ग अपनाया


 


मेरा भारत देश महान जहाँ


आध्यात्म का घना साया


 


सर्वे भवन्तु सुखिनः कहकर


आनन्द का रस बरसाया


 


जगत जीव कल्याण हेतु


हमें नैतिक धर्म सिखाया


 


गीता, रामायण जैसे महाग्रन्थ


 सिखलाएँ जीना जीवन


 


दिखला कल्याण का मार्ग


मनुज का करते मार्गदर्शन


 


ये ऋषि मुनियों की धरती है


अदभुत इसका संसार है


 


नारी को शक्ति स्वरूप मान


दिया देवी रूप में मान है


 


त्याग, बलिदान, साहस, धैर्य


वीरता से पगी ये धरती


 


शांति का नित सन्देश सुनाती


नित वंदन सभी का करती


 


ज्ञान, विज्ञान, चिकित्सा ,दर्शन


है सभी में सबसे आगे


 


ये आर्यावर्त की पावन धरती


जहाँ मंगल गीत हैं साजे


 


निज संस्कृति का मान करें


अभिमान करें हम इसपर


 


विश्व गुरु भारत को नमन है


सदा मेरा झुक- झुककर


 


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


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