निष्काम कर्म
संसार मे बिना किसी स्वार्थ के
जो चलता है सदमार्ग की ओर
जिसे न अभिलाषा है ख्याति की
चित्त रहे सदैव प्रभु चरणों की ओर
करे कर्म निष्काम सदा करता न
कभी परिणाम की की चिंता
तटस्थ रहे जीवन में सदा निर्विकार
उसी की जगत में होती जयजयकार
कहता उसे क्या कोई देता कैसे नाम
उसे तो करना है कर्म अपना निरन्तर
उपाधियाँ न कर पाई कभी उसका सन्धान
कुविचारों को झोंक ज्ञान की अग्नि में
वो चला अनवरत कर्म करता नगरी में
गीता का सार रहा उसका मागदर्शक
जीवन जीने की कला थी उसकी आकर्षक
डॉ. निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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