वृद्धाश्रम
जीवन के रंगमंच का
आखिरी मंचन है वृद्धाश्रम
जीवन काल का परिपक्व
कालखंड है यह स्वशासन
क्या खोया ,क्या पाया, क्या था ?
जिसे मैं पूर्ण नहीं कर पाया
एकाकी जीवन की चौखट पर
मानसिक द्वंद्व का अंतर्द्वंद्व है
गीता के ज्ञान का मिलता
यहीं ज्ञान अवलंब है
मानव जीवन के कष्ट से
मिला मैं यहां जाना हर सत्य है
विकल्पों का स्थान नहीं
चलता यूँ ही जीवन है
जीवन की पाठशाला का
यह भी मानो एक लंबा प्रसंग
क्यों ??मैं प्रतीक्षारत हूं
प्रतिध्वनियों के लिए
नियम विज्ञान का
जीवन में प्रतिध्वनित होता नहीं
पानी के बुलबुले सी स्मृतियां
बनकर मानो मिटती चली
यादों की स्याही भी अब
बह कर स्वतंत्र होने लगी
चुभन भरी मन में
कसक सी रहती है क्षण
उसे जीवन का आधार बना
उत्साह मैं स्वयं में भर लूं
जीवन की आखरी शाम को
जी भर कर जिंदादिली से जी लूं
बढूं आगे अविरल
क्यों देखूं पीछे मुड़कर
खुशी पर किसी का पंजीकरण नहीं
क्यों शुल्क भरुँ रोकर
वृद्धाश्रम को कर्म क्षेत्र बनाकर
क्यों ना चंद यादें सजा लूं
अंतिम सफर में बढ़ते हुए
स्वयं को प्रकाशमान सितारा बना लूं
डॉ निर्मला शर्मा
दौसा राजस्थान
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