डॉ. निर्मला शर्मा

( बाल कविता)        


वायरस


 


वायरस वायरस वायरस वायरस


जीवन का इसने छीना रस


सोना उठना खेल पढ़ाई


वायरस ने सब बन्द कराई


सारा दिन मोबाइल देखूं


पढूँ बैठ पर गेम न देखूँ


मन मेरा हर पल ललचाता


बाहर खेलूँ मचल वो जाता


लेकिन वायरस फिर आ जाता


कहता आओ मुझे चिढ़ाता


दोस्त सखा स्कूल भी छूटा


कैसा ये तारा है टूटा


सब कुछ लगता मुझ से रूठा


जीवन का हर सुख है छूटा


बैठ के मैं सोचूँ हर पल


वायरस का कैसे निकले हल???


डॉ. निर्मला शर्मा


दौसा राजस्थान


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...