डॉ. राम कुमार झा निकुंज

 मधुरिम रिश्ते नित सुखद , हैं जीवन वरदान। 


अति कोमल नाजुक सतत , निर्भर नित सम्मान।।१।।


 


निर्भर हो रिश्ते मधुर , त्याग शील परमार्थ।


लघुतर जीवन तब सफल, रिश्ते हो बिन स्वार्थ।।२।।


 


घर बाहर समाज हो , चाहे देश विदेश। 


आपस के व्यवहार पर , रहते रिश्ते शेष।।३।।


 


रिश्ते हैं अनमोल धन , मधुरामृत उपहार।


सखा सहोदर पूत सम , जीवन का आधार।।४।।


 


नीति रीति नित प्रीति पथ , रिश्ते चले अघात।


सरल सहज औदार्यता , रिश्ते मधुर सुहात।।५।।


 


पलभर दुर्लभ जिंदगी , मधुरिम हो सम्बन्ध।


वाच सुभाष सुहास जन , हों रिश्ते तटबन्ध।।६।।


 


राष्ट्र तभी उन्नत शिखर , रिश्ते बिना सबूत। 


शान्ति प्रेम समरस सुखी , हों पड़ोस मज़बूत।।७।।


 


आकर्षण स्नेहिल हृदय , रिश्ते बिना प्रपंच। 


भातृ बन्धु पशु खग सखा , बिना रखे मन रंच।।८।।


 


छोटी सी भी भूल बस , रिश्ते बने खटास।


पल भर में दुश्मन बने , भूले सभी मिठास।।९।।


 


सब मिलकर खिलता निकुंज,पशु पादप खग वृन्द।


तब हो भुवि सुष्मित प्रकृति , रिश्ते सम अरविन्द।।१०।।


 


कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


नई दिल्ली


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