मधुरिम रिश्ते नित सुखद , हैं जीवन वरदान।
अति कोमल नाजुक सतत , निर्भर नित सम्मान।।१।।
निर्भर हो रिश्ते मधुर , त्याग शील परमार्थ।
लघुतर जीवन तब सफल, रिश्ते हो बिन स्वार्थ।।२।।
घर बाहर समाज हो , चाहे देश विदेश।
आपस के व्यवहार पर , रहते रिश्ते शेष।।३।।
रिश्ते हैं अनमोल धन , मधुरामृत उपहार।
सखा सहोदर पूत सम , जीवन का आधार।।४।।
नीति रीति नित प्रीति पथ , रिश्ते चले अघात।
सरल सहज औदार्यता , रिश्ते मधुर सुहात।।५।।
पलभर दुर्लभ जिंदगी , मधुरिम हो सम्बन्ध।
वाच सुभाष सुहास जन , हों रिश्ते तटबन्ध।।६।।
राष्ट्र तभी उन्नत शिखर , रिश्ते बिना सबूत।
शान्ति प्रेम समरस सुखी , हों पड़ोस मज़बूत।।७।।
आकर्षण स्नेहिल हृदय , रिश्ते बिना प्रपंच।
भातृ बन्धु पशु खग सखा , बिना रखे मन रंच।।८।।
छोटी सी भी भूल बस , रिश्ते बने खटास।
पल भर में दुश्मन बने , भूले सभी मिठास।।९।।
सब मिलकर खिलता निकुंज,पशु पादप खग वृन्द।
तब हो भुवि सुष्मित प्रकृति , रिश्ते सम अरविन्द।।१०।।
कविः डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नई दिल्ली
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