मीत सुलभ नवनीत कहँ , चले मनुज दुर्नीति।
तृष्णा अपरम्पार जग , दुर्लभ प्रकृति प्रीति।।१।।
शोक चिन्तना कवि सलभ , ध्रुव कोराना आज।
जब तक टीका न बने, पड़े काल की गाज।।२।।
रहें गेह में संयमित, कोरोना के काल।
आयुर्वेदिक चिकित्सा , रखे सभी खुशहाल।।३
मास्क बनाये घर स्वयं , लगा लगाएँ आप।
बचे पित्त अरु कफ़ से , दूरी मेल मिलाप।।४
धोएँ साबुन हाथ को , दिन में वारम्बार।
कोरोना से ख़ुद स्वयं , करें नियम उपचार।।५
मनुज शत्रु है स्वयं का , चले स्वार्थ के राह।
खटमल पिस्सू जोंक सब,चूस प्रकृति रस चाह।।६।।
अवसादन अनिवार्य है , प्रकृति बनी अब कुप्त।
कोरोना अभिशाप बन, करे मनुज को सुप्त।।७।।
धन लालच में जग पड़ा , काट रहा है वृक्ष।
नदी पोखर सागर गिरि , आहत नभ अन्तरिक्ष।।८।।
बाढ़ भूस्खलन आपदा , भूकम्पन तूफान।
वज्रपात हर व्याधियाँ , समझ प्रकृति अपमान।।९।।
लाखों लाशें बिछ रही, उजड़ा सुखद निकुंज।
मातम जग छायी हुई , मौन पड़ी अलिगूंज।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नवदेहली
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