राम बाण🏹 अनछुए सवाल (संस्मरण)
मैं अपने स्कूल में बैठा था तभी एक महिला अंदर आने लगी।चपरासी ( महिला)ने रोका।अंदर नहीं जा सकती।
साहब से मिलना है तो नहा धोकर आ। बाम्हन आदमी से वैसे ही मिलने आ गई। साहब पूजा पाठ करते हैं, नहा धोकर स्कूल आते हैं। तू वैसे ही मिलने आ गई । वह महिला वापस चली गई 1 घंटे बाद फिर आई। चपरासी ने फिर उसे भगाना चाहा। तू फिर आ गई तेरे को बोली थी मैं नहा धोकर आ वैसे ही आ गई । वह बोली मैं नहाकर आई हूँ । साहब से दूर से ही बात कर लूंगी। एक बार साहब से मिलवा दो। महिला चपरासी मेरे चैम्बर में आई बोली सर वो (जातिसूचक शब्द निकालकर) आई है आपसे मिलना चाहती है। मैंने उसे आने को कहा वह दूर से ही अपनी बातें रखने लगी। उसे अपनी बच्ची का एडमीशन कराना था। यह घटना लगभग 30 वर्ष पहले की है। उस समय तहसील इतने विकसित नहीं थे। छुआछूत का प्रभाव था। वह बोली सर यदि आप मेरी बच्ची एडमीशन अपने स्कूल में कर दें तो बहुत कृपा होगी। मैंने कहा यहाँ सरकारी स्कूल हैं, वहां एडमीशन ले लो यह प्राइवेट स्कूल है। यहां फीस लगती है।उसकी हालात से वह गरीब लग रही थी। वह बोली साहब मैं दूंगी। बस मेरी बच्ची को पाँचवीं तक पढ़ा दो। मैंने फिर कहा पांचवी तक ही क्यों? वह बोली साहब पांँचवी के बाद महाराष्ट्र में कोई स्कूल(जिसका नाम लिया) है, उसमे एडमीशन हो जायेगा। मैंने कहा यह जानकारी किसने दिया। वह सेंट्रल स्कूल के किसी सर का नाम बतायी कि चतुर्वेदी साहब ही तेरी मदद कर सकते हैं । सरकारी स्कूल में नाम लिखाने की डेट निकल गई ।और वहाँ पढ़ाई भी नहीं होती है। मैंने क्लर्क को बुलवाकर उसे एडमीशन प्रक्रिया बता दीजिये कहा।वह मुझे आश्चर्य से देख रहा था। कुछ बोला नहीं। उसके जाने के बाद एक शिक्षक और महिला चपरासी आ गये। सर इसकी बच्ची को एडमीशन दोगे? मैंने कहा क्यों क्या हुआ! सर वो स्वीपर (जाति सूचक शब्द दोहराई) है। तो क्या हुआ? वह बोली सर अपने स्कूल में सब अच्छी जात के हैं। एडमीशन नहीं होंगे,लोग क्या कहेंगे। मैंने चपरासी को बुलाया और कहा जब तुम्हारी नियुक्ति किया था उसके बाद चाय बनाने कहा था तब तुमने क्या कहा था। वह शांत हो गई। (मुझे याद है वह दिन! चाय के लिये कहा तो इसने कहा था सर आप हमारे हाथ की चाय पी लोगे। मैंने कहा हाथ की नहीं हाथ अच्छे से धोकर साफ स्वच्छता से चाय बनाओ । वह उस समय फिर बोली सर हम डेहरिया समाज के हैं। मैंने फिर कहा मुझे यह नहीं जानना है आप किस समाज से हैं आप स्वच्छता से चाय बनायें।) इस आशय से शिक्षक भी शांत रहा।और वह चपरासी के साथ बाहर चला आया।
सारे स्कूल में चर्चा थी कि स्वीपर की लड़की को पढाना पड़ेगा। सब लड़के उसे छुएंगे।एक दो पेरेंट भी आ गये। मैंने प्रार्थना समय पर छुआछूत का जन्म कहां से हुआ कैसे हुआ यह बच्चों को बताया तो स्कूल के शिक्षकों की आँखे खुल गई ।
वह महिला बहुत खुश थी उसकी बच्ची की जैसे मैंने जीवन बदल दिया । अगस्त माह में रक्षाबंधन पर वह राखी लेकर स्कूल आ गई ।चपरासिन को खल गया। तेरी नाक को शर्म नहीं है ! तू सर को राखी बांधने आ गई, साहब ने जरा सा मदद क्या कर दिये। तुम तो सिर पर बैठने लगीं। भाग यहां से। मुझे आवाज सुनाई पड़ी, भाग यहां से ..तो मैंने सोचा कुछ हो गया मैं बाहर निकला देखा दो तीन लोग, स्कूल बस के ड्राईवर उसे समझा रहे थे । मैंने पूछा क्या हो गया।वह बोली साहब आपके कारण मेरी बेटी की जिंदगी बदल जायेगी।इस कारण मेरा मन आपको भाई मानने लगा और राखी बांधने आई थी। मैं पांच मिनट तक शांत रहा कुछ नहीं बोला। वह बोली कि साहब कोई बात नहीं मैं यहां रख देती हूँ आपके निमित्त आप जैसा बांधना है या नहीं बांधना देख लेना। मैंने उसे पास बुलाया। मैंने कहा साल भर बिना राखी बांधे भी भाई- बहिन, भाई- बहिन ही रहते हैं। तो ..साहब इसलिए रखकर जा रही हूँ ।मैंने कहा बहिन का धर्म क्या है जानती हो?भाई क्या होता है? कभी जानने की कोशिश की ! या चले राखी बांधने ! भाई ने जेब से पैसा दे दिया बहिन ने राखी बांध दी हो गया, साल भर बाद फिर आयेगी राखी।साहब मैं अनपढ हूँ भाई बहन की मदद करता है सुनी हूँ आपने मदद करे तो राखी बांधने का विचार आ गया इसलिए आई थी। पर यहां सब लोग भी मना कर रहे थे । कैम्पस के अंदर कर्मचारी पास आ गये थे मानों मैं उनकी क्लास ले रहा हूँ। मैंने उस महिला से कहा कि मैंने अपनी बहिन के अलावा किसी से आज तक राखी नहीं बंधवाई।अगर राखी बांधना है तो बहन का फर्ज निभाना होगा। सब कर्मचारी और वह महिला शांत हो गये। जरा सी आवाज किसी की नहीं आ रही थी। तभी वह महिला बोली साहब आप बात बता दें मुझे क्या फर्ज निभाना है।मैंने कहा जब तुमको बहिन का फर्ज ही पता नहीं है तो तुम क्या राखी बांधोगी।आँसू निकल गये उसके। मुझे पता है साहब वह राखी रखी थाली उठा लायी तिलक लगाई राखी बांधी। मैंने पैसे देना चाहा पैसा नहीं ली।और अचानक मेरे पैर पड़ ली। मैं कुछ बोलता कि हम बहिन से पैर नहीं पड़वाते तो वह बोली साहब हमारे यहां छोटे बड़े का पैर पड़ते हैं।हालांकि मैं पैर पड़वाने के पक्ष में नहीं रहता। सभी देख रहे थे । दिन बीत गये उसकी लड़की का पांचवी के बाद महाराष्ट्र के स्कूल में एडमीशन हो गया । उसी समय मैं सड़क दुर्घटना में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। दो साल के लगभग एडमिट रहा। वह महिला एक दो बार मुझे देखने नागपुर जहां एडमिट था गई। उसके पश्चात मैंने वहां का स्कूल आदि सब बेचकर सिवनी माता पिता के पास आ गया। यहाँ कालेज स्कूल खोल लिया। सन् 2018 में वह महिला छिन्दवाड़ा में मिल गई। दूर से उसने पहचान लिया और सड़क पर ही पैर पड़ लिया।उसके साथ उसकी बेटी थी जो डॉक्टर बन गई थी ।उसे माँ की हरकत अच्छी नहीं लग रही थी।क्योंकि वह पढ़ी लिखी थी। अपनी बेटी की ओर इशारा करते कहती है इन्हीं साहब के कारण तेरा अच्छे स्कूल में एडमीशन हो गया। और तू पढ़कर डॉक्टर बनी है। मैंने उसको बधाई दिया । वह थैक्यू बोली।उसकी माँ ने डॉटा ! पैर पड़ मैंने मना किया, मैंने कहा रहने दो ।लड़की भी पैर पड़नें में संकोच कर रही थी। संकोच स्वाभाविक था।पढ़ लिख जो गई थी।
सोच थी यह ! पढ़े लिखों की ! और अनपढ़ों की! जिसमें पैर छूने की हो सोच हो या छुआछूत की।
इसी सोच में डूबा मैं सोच बदलने की सोच रहा हूँ।
डॉ.रामकुमार चतुर्वेदी
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