डॉ सुनील कुमार ओझा

मैं आजाद हूँ अब, गम किस बात का। 


चाहूँ मैं करूँगा वह, दंभ इस बात का। 


ऐसी सोंच हमारी बन गई इत्तेफाक ये। 


होने लगा वोही, डर था जिस बात का। 


 


अनुराग राग में, खोके अपनी पहचान।


मशगूल होकर समझे, यही है पहचान। 


छोड़ राहें चलने को आतुर हैं सबलोग। 


वर्तमान समाज का यह आज पहचान। 


 


जिन लोगों ने सींचे, उपबन को लहू से। 


घायल हैं वो आज, अपने उन्हीं लहू से। 


शिकायत करें अब वे, किससे किसका? 


सबकुछ देकर वो आज, सहता लहू से। 


 


मनमौजी 'स्वार्थी', खोया कैसे खुद को? 


पाने की ललशा में, बेचते हो वजूद को। 


मुश्किलों से तुम्हें मिला है, ये स्वतंत्रता। 


सवांर लें भविष्य अपना, बचा खुद को। 


 


कभी भी समय इन्तजार करता नहीं है। 


सामने कौन हैं उसका, वे डरता नहीं है। 


गुलाम हैं सभी होकर दास उसका यहां। 


सत्यता रहती है जबतक, हरता नहीं है। 


 


सौभाग्य से जीवन में, मिलता है मौका। 


होके बिमुख फर्ज से, खोते कुछ मौका। 


दुबारा नहीं आये ये वक्त लौटकर कभी। 


समझे वो पार गये, शेष की डूबी नौका। 


 


              


डॉ सुनील कुमार ओझा 


असिस्टेंट प्रोफेसर (भूगोल विभाग)


-चौबेबल, बाबूबेल, हल्दी,बलिया,उत्तरप्रदेश ,


     पिन- 277402


मो0 न0--9454354932,6386941466,


E.mail..dr.sunilojha@gmail.com


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