डॉ0 हरि नाथ मिश्र

द्वितीय चरण (श्रीरामचरितबखान)-40


 


चले मिलन जनकहिं रघुनाथू।


गुरु बसिष्ठ-लछिमन लइ साथू।।


    पाछे सकल समाजइ गयऊ।


    सचिव सुमंतु संग जे रहऊ।।


गुरु बसिष्ठ कौसिक ऋषि मिलि के।


करैं बिचार भविष-गति लखि के।।


    कीन्हा नमन राम कौसिकहीं।


    सिय-पितु नृप जनकहिं प्रति नवहीं।।


सिय जननी तब रानि सुनैना।


तुरत गईं जहँ रानिन्ह रहना।।


     सुख-दुख कह सभ समधिन्ह मिलि के।


      हरष-बिषाद नयन जल भरि के।।


जथा-जोग सभ जन मिलि भेंटहिं।


कहहिं-सुनहिं कलेस निज मेंटहिं।।


दोहा-राम-लखन दोउ भाइ मिलि, ऋषिहिं झुकावैं सीष।


        बामदेव-जाबालि सँग,कौसिक देहिं असीष।।


        आयसु पा मुनि अत्रि कै,भरत संग सभ लोग।


        चित्रकूट-कामद-छबी,निरखे भा संजोग ।।


                      डॉ0हरि नाथ मिश्र


                       9919446372


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