डॉ0 हरि नाथ मिश्र

चितचोर


चित को चुरा के मेरे,


किस देश जा बसे हो?


तुम तो बड़े हो छलिया-


किस प्यार सँग लसे हो??


 


बंसी बजा-बजा कर,


यमुना-किनारे सैयाँ।


वादे किए बहुत थे,


बैठे कदंब-छैंयाँ।


कसमों को भूल कर के-


किस जाल में फँसे हो??


 


अब तो पता बता दो,


चितचोर ऐ सँवरिया।


किस राह से ये पहुँचे,


तेरी गली बँवरिया?


तुझको निकालूँ आ के-


जिस कीच में धँसे हो।।


 


तेरा-मेरा ये नाता,


सदियों पुराना साजन।


तेरे हृदय की मलिका,


तुझको पुकारे राजन।


चितचोर मेरे छलिया-


क्यूँ दिल मेरा झँसे हो??


 


आ जाओ मेरे कान्हा,


तुझको पुकारे राधा।


निर्मल-विमल व सच्चा,


समझे न प्यार बाधा।


हर लो वियोग-विष को-


बन नाग जो डसे हो।।


       चित को चुरा के मेरे,


       किस देश जा बसे हो??


               © डॉ0हरि नाथ मिश्र


                  9919446372


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