डॉ0 हरिनाथ मिश्र

आफ़ताब 


हर रोज़ आफ़ताब को सलाम करना चाहिए,


रौशनी के घर को आदाब कहना चाहिए।


सोख के समंदर जो आब देता है-


ऐसे ताप- देव का एहतराम करना चाहिए।।


                                 हर रोज़ आफ़ताब.....।।


नित बिखेर रौशनी रवि तम भगाता है,


सोये हुये को दिनकर प्रातः जगाता है।


रवि-रश्मियों से जीवन धरती पे है पलता-


ऊर्जा-अजस्र स्रोत को प्रणाम करना चाहिए।


                              हर रोज़ आफ़ताब........।।


दिनकर-दिवाकर-भास्कर-सूरज इसी का नाम,


आकाश का भूषण यही,अनुपम-ललित-ललाम।


इसके बग़ैर लोक का कल्याण नहीं है-


पूजे बिना न इसको, कोई काम करना चाहिए।।


                           हर रोज़ आफ़ताब...........।।


आराध्य है ये सबका औ वंदनीय है,


अखण्ड तेज-पुंज सूर्य महनीय है।


अपार शक्ति-कोष का विराट रूप रवि-


सविता का स्मरण,सुब्ह-शाम करना चाहिए।।


                         हर रोज़ आफ़ताब............।।


सारे नक्षत्र इसके ही इर्द-गिर्द डोलते,


प्रकाश के समस्त मंत्र वेद बोलते।


रवि-रश्मियों से रहता समस्त व्योम व्याप्त-


रवि का महत्व-वर्णन,सरे आम करना चाहिए।।


                      हर रोज़ आफ़ताब...........।।


सारे कुदरती कृत्य का है केंद्र-विंदु सूर्य,


आबो-हवा औ मौसम का केन्द्र-विन्दु सूर्य।


सूर्य यदि नहीं तो ब्रह्माण्ड निष्प्रयोज्य-


प्रसन्न रवि रहे ऐसा काम करना चाहिए।।


       हर रोज़ आफ़ताब को सलाम करना चाहिए।।


         © डॉ0हरि नाथ मिश्र


         


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