आफ़ताब
हर रोज़ आफ़ताब को सलाम करना चाहिए,
रौशनी के घर को आदाब कहना चाहिए।
सोख के समंदर जो आब देता है-
ऐसे ताप- देव का एहतराम करना चाहिए।।
हर रोज़ आफ़ताब.....।।
नित बिखेर रौशनी रवि तम भगाता है,
सोये हुये को दिनकर प्रातः जगाता है।
रवि-रश्मियों से जीवन धरती पे है पलता-
ऊर्जा-अजस्र स्रोत को प्रणाम करना चाहिए।
हर रोज़ आफ़ताब........।।
दिनकर-दिवाकर-भास्कर-सूरज इसी का नाम,
आकाश का भूषण यही,अनुपम-ललित-ललाम।
इसके बग़ैर लोक का कल्याण नहीं है-
पूजे बिना न इसको, कोई काम करना चाहिए।।
हर रोज़ आफ़ताब...........।।
आराध्य है ये सबका औ वंदनीय है,
अखण्ड तेज-पुंज सूर्य महनीय है।
अपार शक्ति-कोष का विराट रूप रवि-
सविता का स्मरण,सुब्ह-शाम करना चाहिए।।
हर रोज़ आफ़ताब............।।
सारे नक्षत्र इसके ही इर्द-गिर्द डोलते,
प्रकाश के समस्त मंत्र वेद बोलते।
रवि-रश्मियों से रहता समस्त व्योम व्याप्त-
रवि का महत्व-वर्णन,सरे आम करना चाहिए।।
हर रोज़ आफ़ताब...........।।
सारे कुदरती कृत्य का है केंद्र-विंदु सूर्य,
आबो-हवा औ मौसम का केन्द्र-विन्दु सूर्य।
सूर्य यदि नहीं तो ब्रह्माण्ड निष्प्रयोज्य-
प्रसन्न रवि रहे ऐसा काम करना चाहिए।।
हर रोज़ आफ़ताब को सलाम करना चाहिए।।
© डॉ0हरि नाथ मिश्र
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