डॉ0 हरिनाथ मिश्र

द्वितीय चरण(श्रीरामचरितबखान)-32


 


माथ नवाय धरेयु गुरु-चरना।


सबद अघाइ जाइ नहिं बरना।।


   गुरु-पद कमल,राम जनु दिनकर।


   छुवन जासु पंकज-दल-हितकर।।


राम-लखन धयि दुइनउँ भाई।


गुरु बसिष्ठ उर लिए लगाई।।


    केवट दूरइ करै प्रनामा।


    तुरत बताइ के आपुन नामा।।


राम-लखन मिलि-मिलि सबहीं के।


कुसल-छेमु पूछहिं धयि-धयि के।।


    बिकल देखि मातुहिं श्री रामा।


    कहहिं बिकट बिरंचि करनामा।।


प्रथम प्रनाम कैकेई कीन्हा।


दोष सबहिं निज माथे लीन्हा।।


    करहिं प्रनाम अरुंधति माता।


    गुरु-पत्नी सँग मातुहिं नाता।।


तब प्रभु राम लखन के साथा।


मातु सुमित्रहिं टेके माथा।।


   अंत मिले निज मातु कौसल्या।


   हृदय जासु सागर बतसल्या।।


दोहा-लइ असीष निज मातु-गुरु,लखन सहित प्रभु राम।


       चले कुटी निज बट तरे, सीय तकहिं अबिराम ।।


तुरत धाइ सीता तब निकसीं।


जल-तर होइ दूब जस बिगसीं।।


    करहिं प्रनाम छूइ प्रभु-चरना।।


    लागहि रंक पाइ कोउ रतना।।


गुरु-माता कै लेइ असीषा।


सोध मुदित जनु कोउ मनीषा।।


   मगन-मुदित धरि आँचर माथे।


   सीता गईं सासु जहँ साथे।।


सासुन्ह देखि सीय सकुचाईं।


बेलि बिटप जल बिनु मुरझाईं।।


    पाइ असीष सुहाग अमर कै।


    सिय बिहंग मन उड़ै चहकि कै।।


चरन छूइ सभ सासुन्ह सीता।


लीं असीष अनुकूल सप्रीता।।


दोहा-सासु देहिं ढाढ़स सियहिं, कहहिं बहुत समुझाइ।


        धीरजु धरि सभ कछु सहउ,दैव लिखा न मेटाइ।।


        सभें बोलाइ बसिष्ठ तहँ, नमन बिरंचहिं कीन्ह।


        दसरथ-मरन बताइ के,धीरजु सभ जन दीन्ह।।


                     डॉ0 हरिनाथ मिश्र


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