दोहा गीत (चितचोर)
नैन मटक्का मार के,कहाँ गए चितचोर,
रही जोहती रात भर,देख हो गई भोर।
नींद बिना रजनी गई,रही ताकती राह-
सुन साजन पाषाण-हिय,मन-उलझन घनघोर।।
मन उदास सुन लो सजन,नहीं चित्त में चैन,
बिना तुम्हारे साँवरे, कटे नहीं दिन-रैन ।
दत्तचित्त हो एकटक,जोहूँ तेरी बाट-
घर आ जा अब लौट के,हे निर्मम चितचोर।।
तेरा मेरा साथ तो जन्म-जन्म का साथ,
सौंपा जीवन है तुम्हें, दे हाथों में हाथ।
ऐसे मत रूठो बलम,तुम हो प्राणाधार-
बीते पल को सोच कर,मन हो भाव-विभोर।।
लगे चाँदनी चाँद की,जलती सी रवि-धूप,
कुसुम-सेज अब डस रही,धर नागिन का रूप।
दे न सके आराम अब,शीतल चंदन-लेप-
गले मिलो आ शीघ्र ही,हे मेरे चितचोर।।
विरह-अगन की वेदना,देती पीर अपार,
चित बहलाती मैं फिरूँ, फिर भी हो न सुधार।
जीवन-पथ लगता कठिन,सूना भी संसार-
राधा कैसे रह सके,बिन निज नंदकिशोर??
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें