डॉ0 हरिनाथ मिश्र

दोहा गीत (चितचोर)


नैन मटक्का मार के,कहाँ गए चितचोर,


रही जोहती रात भर,देख हो गई भोर।


नींद बिना रजनी गई,रही ताकती राह-


सुन साजन पाषाण-हिय,मन-उलझन घनघोर।।


 


मन उदास सुन लो सजन,नहीं चित्त में चैन,


बिना तुम्हारे साँवरे, कटे नहीं दिन-रैन ।


दत्तचित्त हो एकटक,जोहूँ तेरी बाट-


घर आ जा अब लौट के,हे निर्मम चितचोर।।


 


तेरा मेरा साथ तो जन्म-जन्म का साथ,


सौंपा जीवन है तुम्हें, दे हाथों में हाथ।


ऐसे मत रूठो बलम,तुम हो प्राणाधार-


बीते पल को सोच कर,मन हो भाव-विभोर।।


 


लगे चाँदनी चाँद की,जलती सी रवि-धूप,


कुसुम-सेज अब डस रही,धर नागिन का रूप।


दे न सके आराम अब,शीतल चंदन-लेप-


गले मिलो आ शीघ्र ही,हे मेरे चितचोर।।


 


विरह-अगन की वेदना,देती पीर अपार,


चित बहलाती मैं फिरूँ, फिर भी हो न सुधार।


जीवन-पथ लगता कठिन,सूना भी संसार-


राधा कैसे रह सके,बिन निज नंदकिशोर??


          ©डॉ0हरि नाथ मिश्र


            


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