डॉ0 हरिनाथ मिश्र

दीवारों के कान हैं,कहता है संसार।


फिर भी खड़ी दिवार कर,करता अत्याचार।।


 


कभी-कभी संबंध को,मधुर करे दीवार।


टूटे दिल को जोड़ती,जिसमें रही दरार।।


 


जब विवाद छिड़ता कहीं,जब होती तक़रार।


झट-पट उठ दीवार ही,लाए शीघ्र बहार।।


 


प्यार-घृणा दोनों लिए,सदा खड़ी दीवार।


कभी सटा, कभी दूर कर,है अद्भुत व्यवहार।।


 


कितने इसमें चुन गए,इसे नहीं परवाह।


प्रेमी सच्चे बाँवरे, है इतिहास गवाह।।


 


गारे-माटी से बनी,अजब-गजब दीवार।


घर बनकर देती शरण,यह जीवन-आधार।।


 


तेरे-मेरे घर-भवन,जो भी हैं निर्माण।


कर संभव दीवार यह,बनी सभी का प्राण।।


 


धन्य-धन्य दीवार तुम,तुम्हीं दरार-क़रार।


कर क़रार बनती तुम्हीं,जब होती है रार।।


            ©डॉ0 हरि नाथ मिश्र


               9919446372


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