दीवारों के कान हैं,कहता है संसार।
फिर भी खड़ी दिवार कर,करता अत्याचार।।
कभी-कभी संबंध को,मधुर करे दीवार।
टूटे दिल को जोड़ती,जिसमें रही दरार।।
जब विवाद छिड़ता कहीं,जब होती तक़रार।
झट-पट उठ दीवार ही,लाए शीघ्र बहार।।
प्यार-घृणा दोनों लिए,सदा खड़ी दीवार।
कभी सटा, कभी दूर कर,है अद्भुत व्यवहार।।
कितने इसमें चुन गए,इसे नहीं परवाह।
प्रेमी सच्चे बाँवरे, है इतिहास गवाह।।
गारे-माटी से बनी,अजब-गजब दीवार।
घर बनकर देती शरण,यह जीवन-आधार।।
तेरे-मेरे घर-भवन,जो भी हैं निर्माण।
कर संभव दीवार यह,बनी सभी का प्राण।।
धन्य-धन्य दीवार तुम,तुम्हीं दरार-क़रार।
कर क़रार बनती तुम्हीं,जब होती है रार।।
©डॉ0 हरि नाथ मिश्र
9919446372
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