द्वितीय चरण(श्रीरामचरितबखान)-36
चौदह बरिस अवधि नहिं भारी।
हम बन रहब उमिरि भर सारी।।
जौं प्रभु राम अवधपुर जावहिं।
ऋषि-मुनि सबहिं सरग-सुख पावहिं।।
रामराज-सुख सभ जन पइहैं।
सभ जन मुक्त कष्ट होइ जइहैं।।
प्रभु रामहिं खलु अंतरजामी।
भूत-भविष्य सबहिं कै स्वामी।।
भरत-बिचार जानि प्रभु रामा।
आए तुरत बसिष्ठहिं-धामा।।
सीष नवा प्रभु करहिं निवेदन।
करहु नाथ अनुकूल भरत-मन।।
भरत सुबुध जानहिं मरजादा।
सोचि उच्च जीवन बहु सादा।।
नीति-निपुन ऊ धूरि धरम कै।
कुल-भूषन,प्रेमी सभ जन कै।।
जे कछु चाह भरत कै होई।
मम इच्छा मुनि जानउ सोई।।
भरत मोर अति परम सनेही।
मातुहिं-पितुहिं-बंधु-बैदेही।।
सभकर हित सोचै मोर भाई।
मिलै भरत बड़ पुन्य-कमाई।।
दोहा-होय न कोऊ जगत महँ,भरत समान दयालु।
निष्ठावान-प्रतिग्यदृढ़,नेही, परम कृपालु।।
डॉ0 हरिनाथ मिश्र
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