डॉ0 हरिनाथ मिश्र

द्वितीय चरण(श्रीरामचरितबखान)-36


 


चौदह बरिस अवधि नहिं भारी।


हम बन रहब उमिरि भर सारी।।


     जौं प्रभु राम अवधपुर जावहिं।


     ऋषि-मुनि सबहिं सरग-सुख पावहिं।।


रामराज-सुख सभ जन पइहैं।


सभ जन मुक्त कष्ट होइ जइहैं।।


     प्रभु रामहिं खलु अंतरजामी।


     भूत-भविष्य सबहिं कै स्वामी।।


भरत-बिचार जानि प्रभु रामा।


आए तुरत बसिष्ठहिं-धामा।।


    सीष नवा प्रभु करहिं निवेदन।


    करहु नाथ अनुकूल भरत-मन।।


भरत सुबुध जानहिं मरजादा।


सोचि उच्च जीवन बहु सादा।।


     नीति-निपुन ऊ धूरि धरम कै।


      कुल-भूषन,प्रेमी सभ जन कै।।


जे कछु चाह भरत कै होई।


मम इच्छा मुनि जानउ सोई।।


    भरत मोर अति परम सनेही।


    मातुहिं-पितुहिं-बंधु-बैदेही।।


सभकर हित सोचै मोर भाई।


मिलै भरत बड़ पुन्य-कमाई।।


दोहा-होय न कोऊ जगत महँ,भरत समान दयालु।


        निष्ठावान-प्रतिग्यदृढ़,नेही, परम कृपालु।।


                    डॉ0 हरिनाथ मिश्र


                   


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