डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश

एक दिन तेरी डोली सजाउंगा मैं,


अपने हाथों से तुझको बिठाउंगा मैं। 


 


खूब पढ़ लो अभी मेरे रहते हुए,


वक्त आने दो दुनिया दिखाउंगा मैं। 


 


तुम तो नन्हीं परी सी मेरी जान हो, 


तेरे सपनों को सच कर दिखाउंगा मैं। 


 


रो भी सकता नहीं तेरा बाबा हूँ मैं, 


अपनी बेटी को खुशियाँ लुटाउंगा मैं। 


 


हो गया है सबेरा सो न जाना कहीं, 


पाठशाला में तुझको ले के जाउंगा मैं। 


 


तेरे चाहत की झोली को भरते हुए।


उम्मीदों का दीपक जलाउंगा मैं। 


 


अश्क़ आँखों में अपने न लाना कभी, 


अपनी बेटी को जी भर पढ़ाउंगा मैं।


 


डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश


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