तुमसे मिलने की ये चाहत बता कहाँ जाऊँ,
मुझे मिलता नहीं है राहत बता कहाँ जाऊँ।
भरी महफ़िल में वो तेरा हँसाना - फ़साना,
तुझको सुनने की मेरी हसरत बता कहाँ जाऊँ।
कितना ग़मग़ीन है जमाना तेरा जाना सुनकर,
फिर से पढ़ने तेरी आयत बता कहाँ जाऊँ।
हर इक सू में दिखता है तेरा हँसता हुआ चेहरा,
बाक़ी दुनिया में भरी आफ़त बता कहाँ जाऊँ।
भूलुंगा नहीं वो बलखा के ग़ज़ल पढ़ना तेरा,
तुझको पाने के लिए ऐ राहत बता कहाँ जाऊँ।
दिल के ज़ख़्मों में मरहम जो लगाना चाहा,
मुझको मिलता नहीं इजाज़त बता कहाँ जाऊँ।
वही शाम वही महफ़िल मयक़दा-अ-निज़ाम,
फिरसे करने वही शिकायत बता कहाँ जाऊँ।
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त विवश
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